फ्यू डिकेड्स ऑफ़ अंडरवर्ल्ड - भाग -१ - १९ जनवरी २०२०
हेलो
दोस्तों कैसे हे? जैसे की आप सब
जानते हो मेने इस
२०२० के नए साल
को एनाउंसमेंट किया था की हर
रविवार को में एक
नयी स्टोरी के साथ आ
रहा हु | आज इस साल
का और इस महीने
का तीसरा रविवार हे और जैसे
की आप सब जानते
हो आज का जॉनर
हे थ्रिलर और हम बात
करेंगे अंडरवर्ल्ड के उस खतरनाक
और दर्दभरे आंतक और उसके सामने
लड़नेवाले जांबाजो की | तो आइये ज़्यादा
टाइम न लेते शुरू
करते हे| दोस्तों आप सोचते होंगे
की आज हिंदी में
क्यों लिख रहा हु? पर अंडरवर्ल्ड की
बात हो तो ज्यादातर
आप ने फिल्मो में
भी देखा होगा की वो हिंदी
और उर्दू में ज्यादा बाते करते हे और इस
कहानी की शुरुआत से
थोड़ी ही देर में
आप जान जाएंगे के हिंदी में
ये कहानी क्यों?
एसवीसन
१६०० में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई
ये शायद सभी लोग जानते होंगे पर क्या आप
को डेट मालूम हे वो तारीख
थी ३१ दिसंबर १६००
उस टाइम इंडिया में अंग्रेजो का राज था
करीबन २५० से ज्यादा समय
उन्हों ने हम पे
राज किया | साल १९०० के आसपास उनलोगो
के खिलाफ हमारे स्वातंत्र्य सेना मुकाबला करने के लिए रेडी
हो गई | १९४७ में हमें आज़ादी मिली और अपना देश
दो मुल्को में बाँट गया पर क्या उस
टाइम से ये अंडरवर्ल्ड
का जन्म हुवा था नहीं ये
बात हे १९२५ से
१९४७ के बिच की
जब अंग्रेज को देश से
निकलने की बात चल
रही थी और उनके
खिलाफ कोशिश हो रही थी
तब कुछ हिन्दू और मुस्लमान थे
जो अंग्रेज के साथ मिल
के अपने ही देश को
लूट रहे थे | वो लोग अंग्रेज
के अफसर थे और उनका
लक्ष्य सिर्फ उन्ही की ख़ुशी थी
उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था की अपना
ही देश बर्बाद हो रहा हे
क्योकि उन्हें इन सब में
से दो वक्त की
रोटी और उनसे भी
ज्यादा ऐश आराम की
ज़िंदगी मिल रही थी और सब
लोग उसे सलाम ठोकते थे | वक्त ऐसे ही गुजरता था
और अपने उन सेवा भविओ
स्वतंत्र्यसेना ने अंग्रेजो का
डटकर मुकाबला किया और उन अंग्रेजो
को देश छोड़ना पड़ा उस टाइम जो
हमारे देशवासिओ उनकी फौज में थे वो भी
वहा चले गए लेकिन कुछ
लोग यहाँ रह गए थे
और अब उनके पास
कोई काम नहीं था क्योकि अबतक
उन्हें मुफ्त का खाना मिल
रहा था , पगार भी मिल रही
थी और लोगो में
उनका खौफ भी था जो
सब धीरे धीरे मिट रहा था उसी समय
अब्दुल शेख के नाम का
एक आदमी जो अंग्रेज फ़ौज
छोड़ के यही पर
रह गया था वो आज
भाई अकेले ही सब कुछ
वापिस हड़पना चाहता था लेकिन अब
उसके पास न तो पावर
था नहीं पैसा पर आज भी
उसमे वही डेरिंग था और १६
सितम्बर की वो रात
जब उसे एक दुकानदार ने
खाना मुफ्त में नहीं दिया तो उसने उससे
झगड़ा किया और इसी झगड़े
में मारपिट होने लगी और गुस्से में
उसने उस दुकानदार को
मार दिया | क्या यही शुरुआत थी उस अंडरवर्ल्ड
की? उस दुकानदार की
मौत को देखने के
बाद कोई भी डर जाये
क्युकी गुस्से में उसका चेहरा पत्थर से मार मार
के खून वाला कर दिया था
| पुलिस को पता चलते
ही उसने अब्दुल को गिरफ्तार कर
दिया लेकिन २ ही दिन
में वो वहा से
भी भाग गया और ये बात
सब में आग की तरह
फेल गई| ये बात का उन दूसरे
अंग्रेज कर्मी जो यहाँ पे
थे और बेकार थे
उन्हें पता चला और वो लोग
भी उसे मिलने लगे धीरे धीरे सब भूखे और
कामचोर लोग जो बिना महेनत
के सब पाना चाहते
थे वो लोग जुड़ने
लगे और 1-२ साल में
ये एक संगठन बन
गया और इन सब
का लीडर अब्दुल जो अब्दुल भाई
से जाना जनता था| अब ये लोग
कही पे भी अपना
खौफ निकलते थे , जब चाहा किसी
को लूटा , जब चाहा किसी
को मार दिया लोगो में इसका खौफ दिन - प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था
| बम्बई ही नहीं पूरा
महाराष्र और दूसरे भी
कई जिले इनके खौफ का तमाशा बन
चुके थे| पुलिस के लाख प्रयास
के बाद भी इनका आंतक
ख़त्म नहीं हो रहा था
लेकिन बढ़ रहा था
लोग उनका भोग बनने से ज्यादा भगवन
से मौत मांग रहे थे अब तो
बच्चो के साथ साथ
बड़ो में भी इन सब
का खौफ बढ़ रहा था
लोग सिनेमा देखने जाये , होटल में जाये या बाजार में
जाये हर जगह उनका
खौफ नजर आ रहा था
जैसे की ये देश
हिंदुस्तान नहीं पर खौफिस्टान हो
चूका हो| उस समय बच्चो
में भी अब्दुल जैसा
या फिर कोई फिल्म स्टार की तरह विलन
से लड़ने के लिए बड़ा
बनना एक ख्वाब बन
चूका था लेकिन उसके
घर पे भी बड़ा
बुज़ुर्ग इस बात को
बच्चो के दिमाग से
निकलवा देता था लेकिन उसी
समय अप्रेल १९५२ में एक ही दिन
में गुजरात में और मुंबई में
एक एक बच्चा पैदा
हुवा | मुंबई में जो बच्चा पैदा
हुवा वो मुस्लिम खानदान
में और गुजरात वाला
हिन्दू खानदान में अब ये बच्चे
बड़े हो के क्या
बनेंगे वो देखेंगे अगले
महीने तब तक आप
लोगो का प्यार ऐसे
ही मुझपे रखिये और आप का
कोई सजेशन और कमेंट हो
तो मुझे मेरे सोश्यल मिडिया पे मुझे दे
शकते हो मेरी सॉयल
मिडिया प्रोफाइल की लिंक्स निचे
दी हे | अंत में आप सभी का
दिल से शुक्रिया और
साथ ही साथ मेरे
सोशयल मिडिया पार्टनर्स का भी दिल
से धन्यवाद् क्योकि उनलोगो के बिना ना
में ये सब लिख
पाता |
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